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Friday, June 3, 2011

चवन्नी की महत्ता

सुना है रिज़र्व बैंक ने सभी बैंकों से चवन्नी को वापस लेने का हुक्म जारी कर दिया है और ३० जून के बाद से बाज़ार में इसका कोई नामोनिशान बाकी नहीं रह जाएगा... यानि कि अब चवन्नी चलन से बहार होकर इतिहास बन जाएगी ...मुझे तो बड़ी चिंता हो गई है इस खबर को सुन कर कि   अब क्या होगा भगवान और उनके भक्तों का....कैसे चढाएंगे  भगवान को प्रसाद हम....सवा रुपये, सवा दो रुपये, सवा सात रुपये, सवा ग्यारह रुपये....यही तो रेट फिक्स  हैं न भगवान के प्रसाद के लिए.... और अब जब चवन्नी नही रहेगी तो भला सवा का हिसाब कैसे किया जायेगा. कोई खाली ख़ाली   एक, दो, सात या ग्यारह रुपये का प्रसाद कैसे चढ़ा सकता है भगवान को?  इसी सवा में तो सारा वज़न है जो भगवान को प्रभावित करता  हैं और उनको इसी की आदत भी है हमेशा से ...अब जब ये नहीं रहेगा तो  क्या खाक प्रसन्न होंगे भगवान जी और तब  हो चुकी हमारी मनोकामना पूरी?   मेरे विचार से तो इस संकट से उबरने के लिए रिज़र्व बैंक को ही  कोई समाधान निकलना होगा ...अच्छा तो होगा कि वह सवा रुपये के नए नोट ही निकाल दे .. फिर तो भक्त भी संतुष्ट और भगवान भी खुश  !

हाँ एक बात और...वो जो गाना है न...'राजा दिल मांगे चवन्नी उछाल के'... उसका क्या होगा  ?
कहीं इतना शानदार गाना बंद तो नहीं हो जायेगा.....या फिर अब  हमें इस गाने को कुछ यूं गाना पड़ेगा ...राजा दिल मांगे रुपय्या उछाल के ? 

      







Monday, March 21, 2011

Game of Greed !

एक बार फिर से वही पुराना तेल का खेल जो  इराक  के साथ खेला  गया था,  खेलने के लिए सारे लालची देश मैदान में इकटठे   हो गए हैं,   आखिर  लीबिया पर आक्रमण करने के लिए  ये सब इतने  उत्सुक क्यों हो रहे हैं,  क्या है  इनका मकसद ?  दुनिया जानती है की लीबिया एक तेल का धनी देश है और ये सारे लालची  देश गिद्ध की तरह उसपर  नज़रे गड़ाए बैठे रहते  और अब जैसे ही उनको  मौक़ा मिला  ये किसी की परवाह  किये बगैर उस पर टूट पड़े हैं. एक तरफ तो ये निरीह जनता की रक्षा की बात करते हैं और  वहीं  दूसरी तरफ मिसाइल दाग कर उसी निरीह जनता का क़त्ल कर रहे हैं.....जागो दुनिया वालों,   ये मिल कर विरोध करने का समय है वरना अगर  इसी तरह से  इनकी हौसला अफजाई  होती रही,  तो वो दिन दूर नहीं जब ये हमारे  और आपके  देश पर भी इसी तरह से अपनी दादागिरी  दिखाकर क़ब्ज़ा करने की कोशिश करेंगे और हम असहाय देखते रह जाएँगे !  










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Thursday, March 17, 2011

उल्टा पुल्टा

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उल्टी पुल्टी इस दुनिया का ज़रा हाल देखिये,
राजा करे  चोरी और जनता बेहाल देखिये;
राजनीति के मैदान में जब बिगड़े समीकरण ,
संसद के गलियारों में घूमते दलाल देखिये; 
कानून के रखवाले उड़ाएं कानून की धज्जियां,
मुजरिम का साथ देकर, हुए मालामाल देखिये ;
ये अंधेर देख-देख कर जब परमात्मा रुष्ट  हुआ,
सुनामी संग भूचाल भेज, किया बेहाल देखिये !  




     

Wednesday, March 16, 2011

The warning

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जापान की त्रासदी से यदि हम कुछ सबक ले सकते हैं तो वह यह की हम  अब भी सम्हल जाएँ  और ये मान लें कि खुदा ही सबसे बड़ी ताकत है.  इंसान लाख दावे करे मगर वो खुदा का मुकाबला नहीं  कर सकता. सारी तकनीक, सुरक्षा के सारे दावे धरे के धरे रह गए, पलक झपकते ही सब ज़मींदोज़ हो गए आखिर कमी कहाँ रह गई ....कमीं रह गई तो सिर्फ हमारी सोच में, हम खुदा को भूल गए अपनी कामयाबियों के नशे में और उस ताकीद को भी जो उसने हमको की है- कि -

"Those before them indeed plotted, but Allah struck at the foundation of their building, and then the roof fell down upon them, from above them, and the torment overtook them from directions they did not perceive." (Surat An-Nahl (The Bees):26)       &    "Do then those who devise evil plots feel secure that Allah will not sink them into the earth, or that the torment will not seize them from directions they perceive not?" (Surat An-Nahl (The Bees):45)   &  "Do you then feel secure that He will not cause a side of the land to swallow you up, or that He will not send against you a violent sand-storm? Then, you shall find no Wakil (guardian - one to guard you from the torment)." (Surat Al-Isra (The Journey by Nights):68)   (क़ुरान)














Friday, March 4, 2011

'दिल की किताब'

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दिल की किताब में  एक प्यार की नज़्म है,
उसके लफ़्ज़ों को होठो  पर लाया करें,
गाहे बगाहे, जब भी फुरसत मिले
उन  बोलों को हौले  से गुनगुनाया करें !

Monday, February 28, 2011

नव सृजन

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कल का शेष ....

फिर पीर रहे, न नैनन नीर बहे,
बस शेष हो कविता की कल-कल,
भावों की प्रांजल धारा बन कर
बहती जाये कविता अविरल !
      बहती जाये कविता अविरल ........!





'नव सृजन '


पिछला शेष........


भवजाल में फ़सा हुआ चित
मृग जैसे निस्पंदित, डरता है,
भीतर भीतर कम्पित विचलित,
मन ही मन कमाना करता है;

हर ले पीड़ा तन की, मन की'
मिल जाये कोई ऐसा हलाहल ,
बाहर कुछ  इतना  शोर मचे,
मिट  जाए भीतर सब कोलाहल !

                                             शेष कल....

Friday, February 25, 2011

नव सृजन !

कल का शेष..............

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